नंदनबन में बारिश है और कान्हां हमसे
रूठे हैं
इश्क़ रुतों में, मुश्क़ हवा में, हम ही टूटे टूटे हैं
शबनम, गुंचे, भंवरे, खुश्बू, हल्दी मेहंदी और लाली
क्या बतलाऊं तुम जो नहीं तो मुझसे क्या क्या छूटे है
गैया, गुंजा, गलियां, गोकुल सबको मिला है इश्क़ तेरा
मैं तो हूं तक़दीर से राधा, मेरे क़िस्मत फूटे हैं
पूरा गोकुल लिये खड़ा है तेरी
शिकायत की अर्ज़ी
ख़फ़गी के आलम में यशोदा धान
फ़सल को कूटे है
बात ज़ुबां पर आ जाती तो क्या ही अच्छा था
ऐसी बेमतलब ख़ामोशी, जान जिस्म से छूटे है
तुम तो एक मुरलिया थामें निकल पड़े बस्ती बन में
तुम क्या जानो इसकी ताने किसका क्या क्या लूटे है
लोरी
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 13 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंAp sabhi ko dhnywad
जवाब देंहटाएंक्या बात हैं।
जवाब देंहटाएंशबनम, गुंचे, भंवरे, खुश्बू, हल्दी मेहंदी और लाली
क्या बतलाऊं तुम जो नहीं तो मुझसे क्या क्या छूटे है
बेहतरीन।
shukriya
जवाब देंहटाएंshukriya
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