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गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

अपने साथी से



धूप  में बारिश होते देख के 
हैरत करने वाले! 
शायद तूने मेरी हँसी को 
छूकर 
कभी नहीं देखा !
                      - परवीन शाकिर 

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-12-2014) को "धर्म के रक्षको! मानवता के रक्षक बनो" (चर्चा-1826) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'